अल्पसंख्यक इस अधिकार की श्रेणी में नहीं आते हैं…
हाल ही में फ़िल्म जगत के कलाकार नसीरुद्दीन शाह ने ‘कारवां-ए-मोहब्बत’ नाम के एक प्रोग्राम में देश के माहौल को लेकर कुछ बातें कहीं जिसके बाद उनको लेकर एक वाक्य युद्ध छिड़ गया। उन्होनें शो में कहा-“कई इलाक़ो में हम देख रहें हैं कि एक पुलिस इंस्पेकटर की मौत से ज़्यादा एक गाय की मौत को अहमियत दी जा रही है। ऐसे माहौल में मुझे अपनी औलादों के बारे में सोंचकर फ़िक्र होती है। देश के माहौल में अब काफ़ी ज़हर फ़ैल चुका है।इसे जिन की बोतल में ड़ालना मुश्किल दिख रहा है।”
उनके इस बयान के बाद उनपर अपशब्दों के तीर बरस पड़े, ग़द्दार, पाकिस्तानी कहा जाने लगा। उनके नाम का पाकिस्तान के लिय टिकट भी बुक करा दिया गया। नसीरुद्दीन शाह द्वारा कहीं गई बाते मौजूदा हालात को देखते हुए पूर्ण रूप से सही हैं। यहां पर ग़लत अगर कुछ है तो वो नसीरुद्दीन शाह होना।
देश में मौजूदा हालात बेहद ख़राब हैं। मुस्लिमों और दलितों पर अत्याचार अपने चरम पर है। कभी गाय के नाम पर, तो कभी झूठी अफ़वाओं को सहारा लेकर, बेगुनाह मुस्लिमों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। देश लोकतंत्र से भीड़तंत्र में परिवर्तित होता जा रहा है। जहां, क़ानून का ड़र मानो लोगों के दिलों से ख़त्म हो गया हो। आश्चर्य कि बात है कि बुलंदशहर में एक दरोगा़ की हत्या करने वाला बेखौ़फ घूम रहा है और उस हत्या पर अपनी राय रखने वाले को लोग ग़द्दार कह कर पाकिस्तान भेज रहे हैं।
सोचने वाली बात है कि शाह ने ऐसा क्या कह दिया कि जिसके चलते उन्हें ग़द्दार कहा जा रहा है। लोकतंत्र में सब को अपनी बात कहने का अधिकार है। भारतीय संविधान इसका पूरा अधिकार देता है। अब अगर अल्पसंख्यकों के बोलने से लोगों का फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद सामने आ जाता है तो, बेहतर है आप आर्टिकल 19 ए को संशोधित कर एक पंक्ति और जोड़ दें ( अल्पसंख्यक इस अधिकार की श्रेणी में नहीं आते हैं। )
अफ़राज़ुल, अख़लाक, जुनैद, रोहित, सुबोध कुमार, नजीब, सूचि तो बहुत लंबी है, लेकिन इंसाफ़ किसी को भी नहीं मिला। सवाल नसीरुद्दीन शाह का नहीं। सवाल फ़ैलती उस नफ़रत का है जो दिन-प्रतिदिन अपने पैर पसारती जा रही है। ‘सच्चर कमेटी’ की रिपोर्ट हो या ‘रंगनाथ मिश्रा कमिश्न’ की दोनो में साफ़-साफ़ लिखा है कि देश में मुस्लमानों कि हालात दलितों से भी बत्तर है। हर तरह से अल्पसंख्यकों को कमज़ोर कर उन पर अत्याचार जारी है।
फ़िर भी इस मुल्क़ में बसने वाला मुस्लमान हमेशा से अपने देश के प्रति वफ़ादार रहा है। एक के बदले दस सर काटने वाले लोग आज मुख्यमंत्री बने बैठे हैं। हर छोटी-बड़ी बात पर ग़द्दार कह कर पाकिस्तान भेजने की धमकी दी जाने लगती है। देश की एकता को निरंतर खोखला किया जा रहा है। लोकतंत्र और संविधान को दीमक की तरह चाट कर खोखला किया जा रहा है।
लेखक Nehal Rizvi युवा पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
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